.14 बरष वनवास किया
पिता के वचन का सम्मान किया
सधारण ब्राह्मण का भेज धरे
राज काज का त्याग किया।
पतिव्रता बनके वो सीता
तुंहरे साथ वनवास गइ
लक्षमन भी थे सच्चे भ्राता
इस बात का आभास हुआ
जंगल में जब देखा सोने के मृग को
सीता ने उसकी माँग करी
जब लौट के आये खाली हाथ
कुटिया भी अब शांत मिली
बहन के अपमान का बदला
रावण ने जब लेना चाहा
पहुच गए हनुमंत वहाँ पर
अशोक वाटिका में तहलका मचाया
दुश्मन के भाई को सरन दिए
और न्याय का विस्वास दिलाया
वानर सेना को लेके आये
समुद्र रास्ते प्रवेश कराया
हुआ युद्ध फिर दो पक्षो में
मार काट मच गयी वहाँ
जाने कितनो को तुमने मारा
लाशें थी बस यहाँ वहां
आखिरकार उस रावण को
तुमने ही मार दिया
घमंडी था ये माना सबने
पर उसने बहन का सम्मान किया
अग्नि देव को सौपा था सीता को
फिर तुमने उन्हें क्यों ठुकरा दिया
राज मंत्रियो के कहने मात्र से
उन्हें महल से निकल दिया
राम राज्य में भी
पड़ा था पर्दा सच पर,
कैसे सीता को ठुकरा दिया
फिर कल्युग से क्या उम्मीद करे
जब सत्युग में सच का संहार हुआ....
-कृष्णा
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